भोपाल
OBC- मध्यप्रदेश में ओबीसी आरक्षण पर नित नए विवाद हो रहे हैं। अब इससे संबंधित मध्यप्रदेश शासन के हलफनामे पर बवाल मच गया है। प्रदेश में ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण का मामला सुप्रीम कोर्ट में चल रहा है। प्रकरण में राज्य सरकार ने कोर्ट में हलफनामा दिया है। इसका उल्लेख करते हुए सोशल मीडिया में कई कमेंट और सामग्री वायरल हो रहीं हैं जिसे सुप्रीम कोर्ट में मध्यप्रदेश सरकार द्वारा पेश हलफनामे का अंश बताया जा रहा है। इससे उठते विवाद पर अब राज्य सरकार ने स्पष्टीकरण जारी किया है। सरकार ने सोशल मीडिया पर वायरल की जा रहीं टिप्पणियों और सामग्रियों को पूरी तरह गलत और भ्रामक बताया है। राज्य सरकार ने यह भी साफ कर दिया है कि वायरल की जा रही सामग्री का मध्यप्रदेश सरकार के हलफनामे से कोई लेना देना नहीं है।
ओबीसी आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट में दायर हलफनामे का उल्लेख करते हुए सोशल मीडिया में वायरल कथित सामग्रियों पर राज्य के जनसंपर्क विभाग ने स्पष्टीकरण जारी किया है। राज्य सरकार द्वारा जारी किए गए इस स्पष्टीकरण में वायरल सामग्रियों को पूरी तरह फर्जी करार दिया है।
सरकार ने कहा है कि कुछ शरारती तत्वों द्वारा सोशल मीडिया पर ओबीसी आरक्षण से संबंधित निराधार सामग्रियां वायरल की जा रहीं हैं। सोशल मीडिया पर टिप्पणियां, सामग्री यह कहते हुए वायरल की जा रही हैं कि ये सुप्रीम कोर्ट में प्रस्तुत मध्यप्रदेश शासन के ओबीसी आरक्षण से संबंधित प्रकरण के हलफनामे का भाग है। सरकार का कहना है कि इनका हलफनामे से तनिक भी संबंध नहीं है।
राज्य सरकार ने वायरल सामग्रियों का परीक्षण भी कराया। इसके आधार पर दावा किया कि प्रथम दृष्टया यह ज्ञात हुआ है कि वायरल की जा रही सामग्री वस्तुतः मध्यप्रदेश राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष रामजी महाजन द्वारा प्रस्तुत अंतिम प्रतिवेदन (भाग-1) का हिस्सा हैं। राज्य सरकार ने कहा कि उक्त आयोग का गठन 17-11-1980 को किया गया था जबकि आयोग ने अपना अंतिम प्रतिवेदन तत्कालीन राज्य सरकार को 22-12-1983 को भेजा था।
महाजन आयोग ने 35 प्रतिशत आरक्षण की अनुशंसा की थी
गौरतलब है कि महाजन आयोग ने अपनी रिपोर्ट में 35 प्रतिशत आरक्षण की अनुशंसा की थी जबकि राज्य सरकार ने 27 प्रतिशत आरक्षण लागू किया है। इससे यह स्पष्ट होता है कि राज्य शासन का निर्णय महाजन रिपोर्ट पर आधारित नहीं है।