व्यवसायिक साहित्य उत्सवों ने किया है साहित्य का बेड़ागर्ग- संदीप भूतड़िया

0
129

भोपाल।मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में तीन दिनों तक चले अंतर्राष्ट्रीय साहित्य उत्सव का नाम इस बार उन्मेष था। उन्मेष का अर्थ होता है खुलना या स्फुरण जिसके अनुकूल ही साहित्य के इस उत्सव में कई रंग खुलते हुए देखे गए। इस अंतर्राष्ट्रीय साहित्य उत्सव में 13 देशों से 575 के लगभग साहित्य और संस्कृति से जुड़े लोगों ने हिस्सा लिया। वही एक लेखक ऐसी भी थे जिन्होंने कोरोना महामारी के बाद उपजे अवसाद को लेकर प्रभावशाली बात कही। यह लेखक प्रभा खेतान फाउंडेशन के प्रबंध न्यासी संदीप भूतोड़िया थे। उन्होंने कहा कि कोरोना के बाद दुनिया बदली है, लोगों के आचार-विचार और व्यवहार में बड़ा बदलाव आया है। ये बदलाव सिर्फ भारत ही नहीं दुनिया के सारे देशों के लोगों में साफ दिखने लगा है। आपसी संबंधों में तनाव, करीबियों की उपेक्षा और अपने सुख-दुख में मगन रहने की आदत लोगों में बढ़ गयी है और बड़े पैमाने पर अवसाद भी बढ़ गया है। भूतड़िया की माने तो इस सबका इलाज कोई वैक्सीन नहीं, बल्कि साहित्य संगीत और संस्कृति में डूबने पर ही होगा।

संदीप के अनुसार “साहित्य ही वह माध्यम है जिसके द्वारा हम समय के पीछे जाकर उस समय के काल खंड को जी सकते है। साथ ही हमसे पहले पृथ्वी में जो आए थे उनकी बातों को सीखने-जानने का अवसर भी साहित्य ही देता है। हम संस्कृति की बेहतर समझ पा सकते हैं और इसकी सराहना कर सकते हैं”

संदीप भूतड़िया ने भोपाल में आयोजित साहित्य उत्सव में बताया कि कोरोना के बाद दुनिया में तेजी से बदलाव आया है। स्वास्थ्य और आर्थिक संकट तो खत्म हो गया है, लोगों की सेहत सुधरी है। अर्थव्यवस्था पटरी पर आयी है, मगर समाज का ताना-बाना इस महामारी के बाद बिगड़ गया है। समाज के साथ साहित्य की गहरी समझ रखने वाले संदीप भुतड़िया कहते है कि मानसिक समस्याएं बढ़ गयी है। लोग समझ नहीं पा रहे हैं कि इसका इलाज कैसे होगा। मगर मेरा मानना है कि समाज में साहित्य और संस्कृति का सहारा इन्हीं दिनों के लिये होता है। लोग जितना साहित्य और संगीत में रमेंगे उनको मानसिक परेशानियों से मुक्ति मिलेगी और आपसी सदभाव बढ़ेगा, संबंधों में भी सुधार होगा।

सहित्य उत्सव के दौरान संदीप भूतड़िया ने साहित्य का महत्व और सॉफ्ट पॉवर ऑफ इंडिया विषय पर करीब ढ़ेड-ढ़ेड घंटे को दो व्याख्यान हुए। जिसमें उन्होंने साहित्य कला और संस्कृति को लेकर अपने विचार रखे। इस दौरान उन्होंने व्यवसायिक साहित्य उत्सवों पर भी जमकर निशाना साधा। संदीप भूतड़िया ने कहा कि अंग्रेजी के किसी नामचीन लेखक ने कोई साधारण सी किताब भी लिख दी तो आयोजक उसके महिमामंडन में लग जाते हैं। वास्तव में अतिथि देवो भवः की भावना का सबसे ज्यादा नाश व्यावसायिक साहित्य महोत्सवों की वजह से हुआ है। वही उहोंने कहा कि, व्यावसायिक साहित्य महोत्सवों में क्रिकेटरों और फिल्मी सितारों को साहित्यकारों पर वरीयता दी जाती है। इस वजह से आम पाठकों को बीच साहित्यकारों से सीधे संवाद की बेहतर स्थिति नहीं बन पाती है।

संदीप के मुताबिक, चमक-दमक वाले साहित्य आयोजन कुछ चमक दमक वाले लेखकों के इर्द-गिर्द सिमट कर रह जाता है और असल साहित्यकार इसमें गुम हो जाता है। इसलिये प्रभा खेतान फाउंडेशन कलम और आखर जैसे कार्यक्रम लगातार करती है जिसमें साहित्यकारों की किताबों पर सम्मानजनक चर्चा होती है।
भारत सरकार की संस्थाओं से जुड़कर अनेक देशों की यात्रा करने वाले संदीप अच्छे यात्रा वृतांत लेखक हैं। उनकी हिंदी की पहली किताब आप बीती जग बीती, उनकी दुनिया के देशों के वृतांत पर लिखी दास्तान है। माइ लाइफ माइ टैवलर्स, चाइना डायरी और अब नार्वे की यात्रा पर उनकी नयी किताब आने वाली है। इसके अलावा वाइल्ड लाइफ पर लिखी उनकी द सफारी बाघ संरक्षण पर केंद्रित थी जिसको वन्य प्रेमियों ने खूब सराहा है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here